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आज जानवरो को बचाने की मुहिम नही बल्कि इंसानों को बचाने की मुहिम चलानी चाहिए: नसीम खान

Ghaziabad : आज हम आजादी का 75 वां स्वतंत्रा दिवस का जश्न मना रहे हैं लेकिन *इसी के साथ-साथ हमारे देश में जातीय और धार्मिक भेदभाव छुआछूत साथ-साथ चल रहा है यह कड़वी सच्चाई है कि आज भी हमारे देश में जातीय भेदभाव को ध्यान में रखते हुए अपने ही साथ के लोगों से साथ जानवर से भी बदतर सलूक किया जाता है मुझे याद है आदरणीय मनमोहन सिंह जी की सरकार में एक बार कुछ सांसदों ने आदरणीय मनमोहन सिंह जी से कहा था कि अब हमारे देश में छुआछूत नहीं है इसलिए एससी-एसटी एक्ट को खत्म या फिर इसमें मौजूद कुंच प्रावधानों को कमज़ोर कर दिया जाना चाहिए इस बात को कहने में कुछ दलित समाज के भी सांसद मौजूद थे इसको देखते हुए आदरणीय मनमोहन सिंह जी ने इस मुद्दे पर सरकार में चर्चा की जिसकी भनक आदरणीय राहुल गांधी जी को लग गई *राहुल गांधीजी स्पष्ट रूप से जानते थे कि देश में छुआछूत अभी भी चरम पर है* कुछ लोग सरकार को भ्रमित करना चाहते हैं इसलिए *राहुल गांधी जी ने सरकार से बात की और स्पष्ट कहा कि जमीनी हकीकत को जाने बिना हम इस पर कोई फैसला नहीं ले सकते* तब जाकर यह तय किया गया देश की किसी एक लोकसभा में हम दलित समाज के साथ अभी भी भेदभाव छुआछूत है कि नहीं एक टीम भेजकर इस बात का सर्वे कराएंगे और जमीनी हकीकत को जानकर ही कोई फैसला लेंगे कई सांसदों के सामने दलित समाज के साथ छुआछूत की सर्वे की बात आई तो सबने स्वर्ण समाज के नाराज ना हो जाने को लेकर अपनी लोकसभा में सर्वे कराने को मना कर दिया तब जाकर मध्य प्रदेश मंदसौर से तत्कालीन  लोकसभा सांसद मीनाक्षी नटराजन जी ने अपनी लोकसभा सर्वे कराने के लिए हामी भर दी और लगभग 10 युवाओं की टीम सर्वे के लिए तैयार की गई 
इसमें मेरा भी सौभाग्य था कि उस टीम का हिस्सा मैं भी था* मुझे और मेरे साथी को मंदसौर लोकसभा में एक विधानसभा के 10 गांव दिए गए और उन 10 गांव में दलित समाज के हालात को जान जानकर और एक रिपोर्ट बनाने के लिए कही गई उप रिपोर्ट की सत्यता को जानने के लिए उन गांव में स्वम् मीनाक्षी नटराजन जी ने हमारी रिपोर्ट को लेकर हम लोगो के साथ प्रत्येल ग्राम में चौपाल और मोटरसाइकिल यात्रा कर रिपोर्ट की जांच परख की तब जाकर पुख्ता जमीनी रिपोर्ट राहुल गांधी जी को सौंपी गई और यह तय किया गया कि एससी एसटी एक्ट को कमजोर या फिर खत्म करने की जरूरत नहीं है बल्कि दलित समाज के साथ कोई छुवाछुत की हिमाकत न कर सके इसलिए इस एक्ट को और ताकतवर बनाने की जरूरत है क्योंकि जमीनी हकीकत में दलित समाज के साथ में कल्पना से परे छुआछूत और भेदभाव जमीनी हकीकत में देखने को मिला था।
*मैंने अपनी रिपोर्ट बनाते वक्त उसके आखिर में नोटिंग करते हुए सख्ती के साथ लिखा था कि मैंने 80 के दशक में हिंदी फिल्मों के अंदर स्वर्ण समाज और और हुकुम समाज के द्वारा दलित समाज के साथ जो अमानवीय व्यवहार देखा था वह मैंने आज मंदसौर लोकसभा में स्वयं जमीन के ऊपर देखा है* *मुझे यह लगता है कि इस देश में जानवर बचाने की संस्थाएं जो काम कर रही हैं सरकार को उन्हें बंद करके इंसान बचाने के काम पर लगना चाहिए मैं* अपने सर्वे के दौरान कई ऐसे दलित समाज के युवाओं से मिला जिनके पैर और हाथ पर प्लास्टर बंधे हुए थे उनका गुनाह केवल यह था कि उन्होंने अपनी शादी में घोड़ी पर बैठने के लिए जिद की थी एक गांव में पूरी दलित बस्ती को उजाड़ कर गांव के बाहर फेंक दिया गया था उनका जुल्म यह था कि उनके बीच के एक युवा ने दलित समाज के लिए प्रतिबंधित मंदिर के अंदर घुस के पूजा कर दी थी एक गांव में एक स्वर्ण समाज का मास्टर पिछले 10 साल से सरकारी स्कूल में पढ़ाने आता था और उसने उस गांव के कुए का या उस गांव के नल के का पानी इसलिए नहीं पिया क्योंकि उस गांव की जनसंख्या 70% दलित थी पिछले 10 साल से बगल के गांव से वह मास्टर अपने साथ पानी की दो बड़ी बोतल भर कर लाता था ऐसे बहुत से वाक्य जोकि अमानवीय थे वह हमें देखने को मिले थे।
साहब हम तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के आसपास रहते है इस क्षेत्र के दलितों की हालात से आप पूरे देश की हालात की तुलना नहीं कर सकते इसलिए हम सबको मिलकर एक साथ इंसानों से प्यार करना चाहिए इंसान को जातीय और धार्मिक आधार पर दोयम दर्जे का नागरिक नहीं समझना चाहिए राजस्थान के अंदर बच्ची के साथ जो घटना हुई है उस पीड़ा और दुख को सोचकर शरीर का हरेक सर दर्द के मारे कांप उठता है।
खतरा हमें जंगल में घूम रहे खूंखार खतरनाक जानवरों से नहीं है बल्कि हमारे बीच में मौजूद जातीय भेदभाव करने वाले जानवरों से है।
 गुलाम भारत के अंत में जातिय और धार्मिक भेदभाव की इस प्रकाष्ठा को गांधीजी भलीभांति समझते थे इसीलिए वह अपने शौचालय के मल- मूत्र और साफ-सफाई स्वयं अपने हाथों से करते थे बाल्मीकि मंदिरों को तरजीह देते थे मुस्लिमों के बीच में जाकर उनके धार्मिक ग्रंथों को मान्यता देते थे यही वजह थी कि गांधीजी की लोकप्रिय मुस्लिमों और दलितों में बेपनाह थी और यह गांधीजी की अहिंसा और सर्वधर्म सदभाव के कारण हो सका था इसलिए ऐसी घटनाओं के प्रति गुस्सा या फिर हिंसा की प्रवृत्ति को जाहिर करना भी घातक है गांधीजी के बाद हम मान्यवर कांशीराम जी का एक उदाहरण ले सकते हैं जब बहुजन मूवमेंट में कांशीराम जी उत्तर प्रदेश में लगे हुए थे तो अक्सर इस बात को कहते थे कि मेरे हाथ में यह पेन है इसमें निचला हिस्सा दलितों का है और ऊपरी हिस्सा स्वर्ण समाज का है स्वर्ण समाज ने दलित समाज के ऊपर बैठ कर उन्हें दबाया हुआ है और मैं बहुजन मूवमेंट के जरिए इस व्यवस्था को बदलना चाहता हूं लेकिन मेरी सोच ऐसी बिल्कुल नहीं है कि मैं स्वर्ण समाज को नीचे की और दबा दु और दलित समाज को ऊपर ले अयूँ और यह बात कहते हुए वह पेन को उल्टा कर दिया करते थे और कहते थे कि मैं इसको इस तरीके से नहीं बदलना चाहता और पेन को समांतर लंबाई में लेटा कर बोलते थे कि मैं इसको इस तरीके से बदलना चाहता हूं और व और कहते थे कि मैं बहुजन मूवमेंट के जरिए दलित और स्वर्ण समाज को बराबरी पर लाना चाहता हूं किसी एक को दबाना नहीं चाहता यह भी गांधी जी की अहिंसा वादी सोच का ही एक उदाहरण था इसलिए दलितों पर हो रहे अत्याचार को लेकर हम स्वर्ण समाज के प्रति घृणा को दिल में नहीं ला सकते हैं तभी हमारा देश हमारा प्रदेश हमारा शहर हमारा मोहल्ला हमारा ब्लॉक और हमारा परिवार एक मजबूत और आपसी भाईचारे का गवाह बनेगा आइए हम सब जातीय और धार्मिक भेदभाव को समाप्त करते हुए प्यार मोहब्बत से रहे आप सभी को देश की 75वीं स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत हार्दिक बधाई।
 जय हिंद 
*नसीम खान*
 स्वतंत्र लेखक

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