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इंसानियत ओर मानवता का यह दलित कलंक जन्मो-जन्मो ना धूल सकेगा

आजादी के 75 साल बाद दलितों को एक बूंद पानी भी नसीब नहीं : रविंद्र आर्य 

Ghaziabad : एक दैनिक के खबर अनुसार राजस्थान के जालॉन की सायला क्षेत्र की यह 20 जुलाई की बर्बरता घटना पर आजादी के आज 75 साल बाद भी बच्चों को निशाना बना कर, गन्दी मानस्किता के लोग क्या साबित करना चाहते है? की "दलित अछूत है"। तीसरी कक्षा का विद्यार्थी इंद्र मेघवाल मात्र उम्र 9 वर्ष का पानी के मटके को हाथ लगाना इनता गवारा लगा की मासूम बच्चे को अध्यापक ने थप्पड़ो द्वारा कुरुता से गुस्सै में आँख तक फोड़ डाली। ओर विद्यालय में विद्यार्थी को इतना पीटा गया की तभी बच्चे की कान की नस फट गई। बता दे करीब 25 दिन उपरांत अनेक उपचार के बाद तड़प-तड़प कर अहमदाबाद के एक हॉस्पिटल में बच्चे की हेमरेज से जान चली गई।

*मटके की प्यास*: अध्यापक हेड मास्टर छेल सिंह यह कैसी मनास्किता है। पानी का मटका भी भला किसी इंसान के मात्र छूने से अशुद्ध हो जाता है। हेड मास्टर छेेल सिंह को शिक्षा के जरिये भेदभाव मिटाने की सिख देनी थी। मगर शिक्षक के अंदर छूआछूत का जहर भरा हुआ हो तो शिक्षक में भक्षक का रूप देखना स्वाभाविक है। अध्यापक गुरु तो माना जाता ही है, शिक्षा का सवरूप भी शिष्य को प्रदान करने हेतु, गुरु एक माता-पिता जैसा कर्तव्य निभाता है। परन्तु आज "शिक्षक ही भक्षक" बने हुए है। ऐसा किसी ने भी नहीं सोच-विचार किया होगा की माता-पिता समान गुरु अपने शिष्य की जान दलित होने पर ले लेगा।

*संघर्ष*: 25 दिनों तक मौत ओर जिंदगी के बीच संघर्ष करता हुए। 13 अगस्त शनिवार को 11 बजे मासूम की जान इसलिये गाँवनी पडी वह विद्यार्थी दलित था। तो क्या आजादी के 75 साल बाद भी दलित स्कूलों में प्यासा रहेगा? तो फिर ऐस स्कूलों आजादी ओर संविधान का क्या आधार है? 

इतनी बर्बरता किसी भी इंसान को मत दो की "इंसानियत ओर मानवता का यह दलित कलंक जन्मो-जन्मो ना धूल सके"।

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