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गुप्तचर एजेंसियों से अधिक महत्वपूर्ण है न्यूज़ एजेंसियां!

नई दिल्ली: प्रसार भारती बोर्ड ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया PTI न्यूज एजेंसी को यह चेतावनी दी है कि पीटीआई राष्ट्रहित के अनुरूप काम नहीं कर रही इसलिए प्रसार भारती बोर्ड PTI समाचार एजेंसी की सेवाएं लेना बंद कर सकता है.


 


मेरी जिज्ञासा हुई कि PTI ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया जिससे प्रसार भारती बोर्ड को यह कहना पड़ा? मामले की छानबीन की गई तो पता चला पीटीआई ने भारत में चीनी दूतावास के राजदूत का इंटरव्यू करके राजद्रोह का काम किया है, पहली बात तो यह है प्रसार भारती बोर्ड के कर्ता-धर्ता यह नहीं जानते एजेंसी का काम क्या है इसलिए अज्ञानतावश वह यह सब बातें कह रहे हैं उन्हें तो पीटीआई का शुक्रिया अदा करना चाहिए ताकि इस भारत और चीन सीमा विवाद के बीच में पीटीआई ने वह कर दिखाया जो भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियां भी नहीं कर पाई किसी न्यूज़ को टेलीकास्ट करने का अधिकार प्रसार भारती बोर्ड को है ना कि पीटीआई को, प्रसार भारती बोर्ड इस इंटरव्यू को इंटेलिजेंस एजेंसी को देकर इंटरव्यू में छिपे हुए वाक्यों से चीन की सारी रणनीति का सार निकाल कर भारतीय सेनाओं की इंटेलिजेंस को दे सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ना उन्हें पता है ऐसा भी होता है चाहे समाचार चैनल हो या समाचार पत्र सब के संवाददाता आईबी सीबीआई ईडी सहित सभी गुप्तचर एजेंसियों मैं रिपोर्टिंग करते हैं जब भी कोई राष्ट्र हित का मामला होता है सुरक्षा एजेंसियां उन्हें चाय पिलाती हैं और यह बता देती हैं किन समाचारों को नहीं दिखाना कौन से समाचारों को दिखाना राष्ट्रहित में ठीक नहीं होगा, इससे हमारे देश की सैन्य रणनीति प्रभावित हो सकती है इन गुप्तचर एजेंसियों को कवर करने वाले पत्रकार यह संदेश अपने संपादकीय मंडल के बॉस को बता देते थे उसी के अनुसार कौन सी न्यूज़ दिखानी है कौन सी नहीं दिखानी देश हित को सर्वोच्च मानते हुए हर समाचार पत्र हर समाचार एजेंसी हर सेटेलाइट चैनल इस पर काम करता था यह कोई आदेश या चेतावनी नहीं होती थी यह प्रेम पूर्वक बोले जाने वाली राष्ट्रीयता का बहुत बड़ा नमूना हुआ करता था लेकिन बदलते परिवेश में अब यह सब बातों की कोई वैल्यू नहीं रही अब तो अखबार का मालिक चैनल का मालिक सत्ता के गलियारे में घूमते रहते हैं चाटुकारिता करते हैं और जिसे राष्ट्रभक्ती माना जाना चाहिए उसे राष्ट्रद्रोह बताने लगते हैं दुख की बात यह है कि जो लोग सर्वोच्च शिखर पर बैठे हुए हैं उन्हें यह पता नहीं है समाचार केवल टेलीकास्ट करने के लिए ही नहीं होता उसका बहुत कुछ उपयोग भारत सरकार की एजेंसियां करती हैं।


 


आज की स्थिति क्या है मैं कह नहीं सकता लेकिन पहले सारी इंटेलिजेंस एजेंसियों के दफ्तर में न्यूज एजेंसियों का टेलीप्रिंटर लगा रहता था इसके लिए बाकायदा गुप्तचर एजेंसियां समाचार एजेंसियों को भुगतान करती थी और उन्हीं में से अपने मतलब की न्यूज़ अध्ययन के लिए अपने पास रख लेती थी उस पर गुप्तचर एजेंसियां गहन छानबीन करके कई राष्ट्रीय हित एवं संवेदनशील मामलों का हल खोज लिया करती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है 


 


अब काम के बल पर लोगों की नियुक्ति नहीं होती अब चाटुकारिता के दम पर बड़ी बड़ी पोस्ट अधिकारी पा जाते हैं देश में कार्य कर रही समाचार एजेंसियां किसी भी गुप्तचर एजेंसी से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं इनके संवाददाता या कर्ताधर्ता अपनी कड़ी मेहनत से राजस्व जुटाते हैं तब कहीं जाकर राष्ट्र की सेवा के साथ अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं कई बार तो एजेंसियों के प्रतिनिधि देश के दुश्मनों की मांद के अंदर जाकर रिपोर्टिंग करने का कार्य करते हैं और इंटरव्यू में बातो ऐसी ऐसी बातों की जानकारियां निकाल लेते हैं जो भारत सरकार के लिए अति महत्वपूर्ण होती हैं 


 


गुप्तचर एजेंसियों का बहुत बड़ा बजट होता है उन्हें बजट को कहीं भी खर्च करने का अधिकार होता है और उसका कोई ऑडिट नहीं होता लेकिन न्यूज़ एजेंसी सीमित संसाधनों में भी कई बार ऐसे काम कर देती हैं जो किसी के लिए कर पाना संभव नहीं होता।


 


वैसे भी आजकल नॉन न्यूज एजेंसी के कैमरे हर मंत्रालय में प्रवेश पा गए हैं, कई प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां न्यूज़ कवर करने का कार्य कर रही हैं वह कानून के अनुसार न्यूज़ कवर करने के लिए अधिकृत नहीं है केवल चंद लोगों की कृपा पाकर उनकी पहुंच वहां तक हो गई है जहां पर जाना निषेध है यानी वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता लेकिन जिनकी जिम्मेदारी राष्ट्र की अस्मिता बचाने की है अगर वही राष्ट्र को जाने अनजाने में अथवा अपने हित को सर्वोपरि पर रखते हुए ऐसा कर रहे हैं तो इसमें कोई क्या कर सकता है।


 


 


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