बल्कि किसी की स्वतंत्रता की रक्षा का संकल्प था।
जिन्होंने उसे खोकर भी
उसके लिए दुआ माँगनी नहीं छोड़ी,
क्योंकि मोहब्बत उनके लिए
स्वार्थ नहीं, पवित्रता थी।
जो हँसी-हँसी में सब कुछ सह गए,
ताकि कोई यह न कहे कि
प्रेम में पुरुष कमज़ोर हो गया।
वे कमज़ोर नहीं थे,
बल्कि इतनी शक्ति रखते थे कि
किसी की छवि को धुंधला न होने दिया।
वे पुरुष —
न लेखों में मिलते हैं, न मंचों पर चढ़ते हैं,
पर हर उस स्त्री की आत्मा में बसे होते हैं,
जिसने सच्चे प्रेम को एक बार जिया हो।
वे पुरुष, जो टूटे…
पर अपनी टूटन से किसी और का विश्वास न टूटने दिया।
जो चले गए…
पर जाते-जाते भी आदर छोड़ गए।
क्योंकि उनके लिए प्रेम
किसी की बाहों में समा जाना नहीं था,
बल्कि उसकी गरिमा में चुपचाप शामिल रहना था।
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