उत्तर प्रदेश में अभिभावकों से निजी स्कूलों द्वारा की जा रही बेतहाशा लूट पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश की योगी सरकार ने फीस अधिनियम 2018 जिस मंशा से बनाया था वो सत्ता के गलियारों में बैठे शिक्षा माफियाओं के वर्चस्व के कारण आज तक पूरा नहीं हो सका जब आज हम 6 साल बाद इस फीस बिल का अभिभावकों को मिले लाभ का धरातल पर आंकलन करते है तो निजी स्कूलों द्वारा किताब, कॉपी स्टेशनरी,यूनिफॉर्म,जूते,मोजे वार्षिक शुल्क और मोटी फीस के नाम पर की जा रही लूट पहले की तरह बादस्तुर जारी है अभिभावकों की सरकार से आशा निराशा में बदल गई है आज 6 साल बाद भी यह बिल जिलों में लागू होने की राह देख रहा है जो दिखाता है की प्रदेश सरकार शिक्षा माफियाओं के दबाव में काम कर रही है इतना ही नही प्रदेश सरकार आरटीई के तहत चयनित गरीब बच्चो के दाखिले कराने में भी निजी स्कूलों के सामने नतमस्तक है हमने अनेकों बार महसूस किया किया है की शिक्षा के मुद्दे को सरकार सुनना ही नही चाहती जिसका जीता जागता उदाहरण है की जब भी योगी जी गाजियाबाद आते है तो अभिभावकों की पीड़ा और शिक्षा के मुद्दे की आवाज दबाने के लिए नजरबंद कर दिया जाता है जिस शिक्षा को भारत में समाज सेवा के रूप में जाना जाता था आज उसी शिक्षा को शिक्षा माफियाओं और सरकारो के गठजोड़ ने व्यापार बना आम अभिभावक की पहुंच से दूर कर दिया है शिक्षा को मोटे दामों पर बेचा जा रहा है सरकार और अधिकारी इस लूट को नियंत्रित करने की बजाय मूक दर्शक बने देख रहे है पिछले 12 सालो के संघर्ष के बाद अब लगने लगा है की देश और प्रदेश के अभिभावकों को अगर निजी स्कूलों की लूट से मुक्ति पाना है तो एक जुट और एक स्वर में अपनी आवाज बुलंद कर सरकार और शिक्षा माफियाओं के गठ जोड़ पर कड़ा प्रहार करना होगा साथ ही शिक्षा के मुद्दे को कही ना कही वोट से जोड़ना होगा उसके बाद ही शिक्षा को समाज सेवा के मूल रूप में स्थापित कर देश के प्रत्येक बच्चे को सस्ती और सुलभ शिक्षा के सपने को साकार किया जा सकता है
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