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वैभवों का राज - सिंहासन

 (1) वैभवों का राज - सिंहासन ।

           त्याग बैठा है तथागत मन ।

         अब स्वयम् को जीत लेंगे हम

         मिल गया है जेत का 'वह' वन।


(2) आग लगेगी जब-जब भी इस धरती पर,

     बुद्ध! तुम्हारी करुणा तब-तब बरसेगी


(3) अपने मन को अपने तन से साधने तो दो।

दृष्टि इक सम्यक् नयन से झांकने तो दो।

ये अंधेरा एक क्षण भी टिक न पाएगा, 

एक गौतम बुद्ध ख़ुद में जागने तो दो।।


(4) कभी तुम भाव लगते हो कभी सुविचार लगते हो।

सहज लगते बहुत करुणा के तुम अवतार लगते हो।

तुम्हारी छवि अलौकिक विश्व आलोकित करे हर क्षण, 

बहुत है तेज माथे पर मगर सुकुमार लगते हो।।


©रश्मि शाक्य


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