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बिहार में चुनाव चल रहा था, इसी दौरान हैदराबाद में बाढ़ आ गई। AIMIM सुप्रीमो चुनाव प्रचार छोड़कर वापस हैदराबाद लौटे

 दिल्ली : बिहार में चुनाव चल रहा था, इसी दौरान हैदराबाद में बाढ़ आ गई। AIMIM सुप्रीमो चुनाव प्रचार छोड़कर वापस हैदराबाद लौटे और दिन रात की परवाह किये बग़ैर वे बाढ़ पीड़ितों के बीच पहुंचे, उनकी हर संभव मदद की, निश्चित तौर से वे बाढ़ के पानी का रुख तो नहीं मोड़ सकते थे, और न ही इस बाढ़ में जान गंवाने वाले लगभग 50 लोगों को ज़िंदा कर सकते थे, ये उनके वश का भी नहीं था। हां! बाढ़ में फंसे लोगों को राहत जरूर दे सकते थे, और इस काम को उन्होंने बखूबी किया।

 इस दौरान बाढ़ पीड़ितों की मदद करते हुए भाजपा नेता कहीं नहीं दिखे, प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के किसी भी चोटी के नेता ने हैदराबाद के बाढ़ पीड़ितों की मदद करना तो दूर उनके लिये दो लफ्ज़ संवेदना के भी व्यक्त नहीं किए। इस बाढ़ के दौरान लोगों की मदद करते हुए टीआरएस के नेता दिखे जरूर लेकिन ओवैसी द्वारा कराए गए राहत कार्यों के मुक़ाबले उनका कार्य असरदार नहीं था।


बाढ़ आए हुए लगभग एक महीने ही गुज़रा है, आज ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉर्पेरेशन के चुनाव के नतीजे आए हैं। इन नतीजो में चार सीटों वाली भारतीय जनता पार्टी चालीस का आंकड़ा पार गई, ओवैसी की पार्टी तो फिर भी अपने पिछले प्रदर्शन के इर्द गिर्द ही प्रदर्शन करती नज़र आई, लेकिन राज्य और हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉर्पेरेशन की सत्तारूढ़ टीआरएस पिछले चुनाव में जीती हुईं लगभग आधी सीटें हार गई। सवाल है कि भाजपा में ऐसा क्या है जिसकी वजह है उसका क़द लगातार बढ़ता जा रहा है? धर्मांधता, और एक समुदाय से खुली नफरत के अलावा भाजपा के पास और कौनसा हथियार है जिससे उसके समर्थन में बंपर मतदान होता है? अगर काम के आधार पर ही वोट मिलता है तो फिर ओवैसी की पार्टी को जीएचसी चुनाव में सबसे अधिक सीटें मिलनीं चाहिए थीं, लेकिन मौजूदा भारतीय लोकतंत्र में इन दिनों नफरत की राजनीति का बोल बाला है, एक समुदाय को ‘खलनायक’ बनाकर उसके खिलाफ नफरत भड़काकर, और एक वर्ग विशेष में हिंदू राष्ट्र बनाने की चेतना जगाकर वोट बंटौरा जा रहा है।


भाजपा एंव उसके अनुषांगिक संगठनों ने अपने पारंपरिक वोट बैंक में इस तरह नफरत को ‘इंजेक्ट’ किया है कि वह रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, को भूलकर सिर्फ ‘हिंदू राष्ट्र’ के सपने को साकार करने में लगा है। हैदराबाद आदर्शशहर कैसे बने इसकी फिक्र नहीं है, फिक्र है तो सिर्फ यह कि हैदराबाद का भाग्यनगर किस दिन बने! कैसे उसे ‘निज़ाम’ कल्चर से छुटकारा मिले। निज़ाम से मुराद कोई व्यक्ति विशेष नहीं है बल्कि एक वर्ग विशेष है। ज़ाहिर ये सपने पूरे तो सिर्फ सपने ही रहेंगे, लेकिन उन्हें पूरा करने की ललक ने एक और विभाजन की पटकथा लिख दी है, यह विभाज़न ज़मीन के टुकड़े का नहीं बल्कि दिमाग़ों का हुआ, दिमाग़ पूरी तरह बंट चुके हैं। यही कारण है कि हैदराबाद में बाढ़ पीड़ितों की मदद करने वाले राजनीतिक दल के उम्मीदवार पुराना प्रदर्शन ही दोहरा पाते हैं, लेकिन हैदराबाद को भाग्यनगर बनाकर निज़ाम कल्चर से मुक्ती दिलाने का आह्वान करने वाली पार्टी पिछले चुनाव में जीती हुईं चार सीटों से चालीस पर पहुंच जाती है। मैंने दो दिन पहले लिखा था कि भाजपा की दिली ख्वाहिश दो पार्टी बनाने की है, एक मुस्लिम पार्टी दूसरी हिंदू पार्टी, हिंदू पार्टी के तौर पर भाजपा खुद को स्थापित कर चुकी है। आज जीएचएसी के चुनाव के नतीजे देखिए और खुद को सेक्युलर बताने वाली टीआरएस का हस्त्र देख लीजिये। उसके बाद मंथन कीजिये।

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