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किसान की बेटी हूँ किसानों के साथ हूँ

स्वप्न बेचने वाले लोग बैठे जब लिखने तक़दीर।


हिस्से में हल - मिट्टी के आया बस सागर भर पीर ।।


 


एक बेवफ़ा प्रेमी सी आश्वासन भेजे दिल्ली,


स्वर्ण महल हंस-हंसकर के रोज उड़ाता है खिल्ली,


वहां मौज है प्यालों की और यहां आंखों में नीर ।।


 


योजना नदी की बनी जो निगल गए उसको घड़ियाल ,


सहती है खेत की फसल बाढ़ कभी सूखे की मार ,


पैरों के छाले अनगिन करते हैं रात भर अधीर ।।


 


कितने लगते सरल उन्हें कठिन प्रश्न भूख-प्यास के,


खेतों में हैं उदासियां ख़ुशियां घर अमलतास के, 


लकराता नन्हा मुन्ना दुबराया भूख से शरीर ।।


 


सरकारी आंकड़े कहें देश कर रहा विकास है,


 हम पहुंच गए हैं चांद पर, मंगल भी आस-पास है,


अच्छे दिन गीत गा रहे , हो गए हैं हम सभी अमीर ।।


 


जीवन के अमृत घट में भर जाता जब कभी ज़हर,


मंज़िल तब दिखती है दूर खलता है सांस का सफ़र, 


मौत काट देती है तब जीवन की बोझिल ज़ंजीर।।


 


© रश्मि शाक्य✍️


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