Hot Posts

6/recent/ticker-posts

धूप को हटाकर छाँव का एहसास कराती हुई एक होनहार कवयित्री

शीतल गोयल 'स्पर्श' की शायरी ग़ज़ल के लफ़्ज़ों मुआनी की तरजुमानी कराती हैं, हालांकि बड़े और मोतबर लोगों ने ये सोंचा ही नहीं था के कल औरत भी शायरी करेगी, इसलिए उन्होंने ग़ज़ल के लफ्ज़ी मुआनी यानी "औरत से गुफ्तगू" और और उसके हुस्न की तारीफ से मंसूब कर दिया ? आज 21वीं सदी में ग़ज़ल के मुआनी को तब्दील कर दिया है और वो तमाम बातें जो कल मर्द किया करते थे औरतें करने लगी हैं औए मर्दों के बनाये हुए समाज और उसूलों से आँख मिलाना शुरू कर दिया।


      मैं शीतल गोयल "स्पर्श" को ऐसी कवयित्रियों की सफ़ में रखता हूँ जिन्होंने पुराने प्रतिबंध तोड़कर अपने दिल की बात को शायरी के साथ कहना शुरू कर दिया है जिसमें विद्रोह की आहट सुनाई देती है। शीतल गोयल का पैग़ाम सीधे और सच्चे राहों पर चलने का है, ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव में शराफ़त और तहज़ीब का दामन न छोड़ने के लिए है, उन्होंने धूप को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया है बल्कि छाँव की तलाश अपनी शायरी के माध्यम से की है। उनकी भगवान पर अटूट श्रद्धा है जिसका जिक्र उनकी शायरी में हमें जगह-जगह मिलता है, जिसकी वजह से शीतल गोयल कोई भी सब - स्टैण्डर्ड बात या ग़लत कामों को प्रोत्साहन नहीं करतीं।


उनके मिसरों में रवानी है, शेरों में गहराई है , शब्द सादा और सरल हैं यही बात उनके गीत और कविताओं में भी प्रमुख है।


मेरी दुआएँ उनके साथ हैं और ये यकीन भी है कि वो भटकते हुए समाज में एक हलचल अपनी शायरी और कविताओं के माध्यम से पैदा करेंगी।


 


                           मलिकज़ादा जावेद


                           


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ