Hot Posts

6/recent/ticker-posts

कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में दिलवाया बिहार राज्य में 27% आरक्षण : रामदुलार यादव

जन से जननायक तक का सफ़र किसानों, शोषितों, पीड़ितों के नेता कर्पूरी ठाकुर के जन्म दिन 24 जनवरी 2020 पर विशेष:
   किसानों, शोषितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों तथा दलित कमजोर वर्ग के मसीहा सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, जातिवादी विषमता तथा सामन्तवादी साम्प्रदायिक विसंगतियों के विरोधी जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1921 को जनपद समस्तीपुर ग्राम पितौझिया (वर्तमान कर्पूरी ग्राम) बिहार में साधारण नाई जाति में हुआ, उनके पिता गोकुल ठाकुर तथा माता राम दुलारी अपना पुश्तैनी कार्य करते हुए बालक कर्पूरी को प्रारम्भिक शिक्षा गांव की पाठशाला में दिलायी| उच्च शिक्षा के लिए उन्हें दरभंगा बिहार भेजा गया|


1942 का यह वही काल था जब महात्मा गाँधी जी का ब्रिटिस सरकार के खिलाफ भारत छोड़ों आन्दोलन “करो या मरो” सत्याग्रह चल रहा था कर्पूरी जी गाँधी जी के आन्दोलन से प्रभावित होकर छात्र जीवन त्याग कर अंग्रेज सरकार के विरुद्ध आन्दोलन में कूद पड़े उन्हें 26 महीने जेल की सजा हुई| जेल से रिहा होने के बाद वे कांग्रेस समाजवादी दल के सदस्य बने उन्हें आचार्य नरेन्द्र देव, जय प्रकाश नारायण, डा0 राम मनोहर लोहिया के साथ कार्य करने का अवसर मिला| बाद में पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में भी आपको सामाजिक न्याय के लिए पिछड़ों, अति पिछड़ों, किसानों तथा कमजोर वर्गों में राजनैतिक चेतना जागृत करने का मौका मिला| 
    कर्पूरी ठाकुर प्रखर समाजवादी विचारक तथा दलितों, अति पिछड़ों, पिछड़ों, किसानों, कामगारों के सार्वभौम नेता रहे, वे बिहार के ‘हिन्द किसान’ पंचायत के महामंत्री रहे| किसान, मजदूर आन्दोलन का नेतृत्व बड़ी कुशलता से करते हुए संधर्ष के सिलसिले में आजाद भारत में भी कई बार जेल की यातना झेली| वे सदैव गरीबों के जीवन स्तर में सुधार, उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, समान अवसर की व्यवस्था तथा सामाजिक न्याय के लिए संघर्षरत रहे| वे समाजवादी विचारधारा के प्रबल पक्षधर रहे वे 1952 में विधान सभा के चुनाव में निर्वाचित हुए, तथा विधान सभा का चुनाव अनेकों बार जीतकर बिहार प्रान्त के नेता स्थापित हुए| डा0 लोहिया के गैर कांग्रेस वाद के नारे का असर बिहार में भी पड़ना स्वाभाविक था, कर्पूरी जी 1967 में संयुक्त विधायक दल की सरकार में महामया प्रसाद सिन्हा के मुख्यमंत्रित्व में गठित सरकार में उप मुख्यमन्त्री का कार्य संभाला, शिक्षा व वित्त मंत्री के कार्य का निर्वहन बड़ी कुशलता से किया| 1969 में इन्हें अखिल भारतीय संयुक्त समाजवादी दल का अध्यक्ष बनाया गया|
      22 दिसम्बर 1970 को मतभेद के कारण विधायक दल में फूट पड गयी, कांग्रेस मंत्रिपरिषद भंग हो गयी कर्पूरी जी संयुक्त विधायक दल के नेता चुने गये, बिहार के मुख्यमंत्री बने| 1974 में जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर विधान-सभा की सदस्यता से त्याग पत्र दे दिया| कांग्रेस की लोकतंत्र विरोधी नीतियों का डटकर मुकाबला किया 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने देश में आपात काल घोषित कर सारे नागरिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगा दिया| संविधान की मूल-भावना तार-तार हो गयी, कर्पूरी ठाकुर ने भूमिगत होकर आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, इसी का परिणाम रहा कि जब आपातकाल हटा, जनता पार्टी की बिहार में सरकार बनी तो 1977 में कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के वरिष्ठ नेता सतेन्द्र नारायण सिन्हा को हराकर नेता पद का चुनाव जीता दूसरी बार 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे| उन्होंने ही अपने मुख्यमंत्रित्व काल में पिछड़ों को 27% प्रतिशत आरक्षण की सरकारी नौकरियों में व्यवस्था की| 


    कर्पूरी ठाकुर का जीवन अभाव में भी, आज की पीढ़ी के लिए जो ईमानदारी से सार्वजानिक जीवन में कार्य करना चाहती है या कर रही है उदहारण है व प्रेरणा भी है, उनका व्यक्तित्व सरल, सादगी, ईमानदारी व नैतिकता की मिसाल है, जन्म से लेकर बिहार प्रदेश के मुख्यमन्त्री बनने तथा उच्च पदों पर रहते हुए भी अभाव में जीने की कला आज की पीढ़ी को उनसे सीखनी चाहिए, सुख-समृद्धि-सत्ता का आकर्षण उनके जीवन को कभी भी प्रभावित नहीं कर सका| निजी पूंजी के नाम पर उनके पास उनका व्यक्तित्व व उनका नाम था, वे हमेशा समाज के कमजोर वर्गों, किसानों, दीन-दुखियों, बेबस-लाचार, शोषितों, पीड़ितों, प्रताडितों, वंचितों की पीड़ा के प्रति संवेदनशील रहे| जन नायक कर्पूरी ठाकुर ने ही सरकारी नौकरियों में आरक्षण का सूत्र दिया जिसे कर्पूरी जी के नाम से जाना जाता है उनके लिए यह सूक्ति प्रस्तुत करना लेखक आवश्यक समझकर प्रस्तुत कर रहा है कि
                        “सूरा, सोई सराहिये, जो लडे दीन के हेत|
                        पुरजा-पुरजा कटि मरै, तबहुं न छाडै खेत”|| 
   कर्पूरी जी पूरे जीवन गरीब, दबे, कुचले, शोषित, पीड़ित तथा प्रताड़ितों के विकास के प्रति समर्पित रहे| इस महान क्रान्तिकारी, भारत माँ का सच्चा सिपाही, कुशल राजनीतिज्ञ, बेजुबान की आवाज ने 17 फरवरी 1988 को इस असार संसार को त्यागकर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए अमर हो गये, तथा जन से जननायक तक की यात्रा अनेकों झंझावातों को सहन करते हुए अन्तिम साँस तक संघर्षरत रहे| कर्पूरी ठाकुर के निधन के अवसर पर एक पत्रिका ने उनके सम्मान में यह समाचार प्रकाशित किया कि बस, ट्रेन, जहाज में किताबों व पत्रिकाओं का बण्डल दबाये दौड़ता हुआ चढने वाला और कोई नहीं वह कर्पूरी ठाकुर जैसा किसानों व कामगारों का मसीहा हो सकता है जो जीवन भर समता, सम्पन्नता व अन्तिम व्यक्ति के अधिकारों के लिए संघर्ष करता रहा|   
                                                                          लेखक:
                                                                       रामदुलार यादव
                                                                    सदस्य राज्य कार्यकारिणी 
                                                                     समाजवादी पार्टी (उ0प्र0)


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ