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भाईचारे का नंगा सच: पहलगाम में हिन्दुओं के साथ अमानवीयता की भयावह तस्वीर

घटना के अनुसार, जांचकर्ताओं ने पाया कि 26 शवों में से 20 पुरुषों के निचले वस्त्र अस्त-व्यस्त अवस्था में थे


लेखिका: मैतै समुदाय सनातनी विचारक अमिता सिंह बेंगलूर (असम शिलचर) 

Ghaziabad :- पहलगाम (जम्मू-कश्मीर) में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने न केवल निर्दोष नागरिकों की जान ली, बल्कि मानवता को भी शर्मसार कर दिया। जांच में सामने आए तथ्यों ने देशभर में सनसनी फैला दी है।
आतंकियों ने केवल जानें नहीं लीं, बल्कि मृतकों की धार्मिक पहचान जानने के लिए उनकी अंतिम मर्यादा भी भंग की।

घटना के अनुसार, जांचकर्ताओं ने पाया कि 26 शवों में से 20 पुरुषों के निचले वस्त्र अस्त-व्यस्त अवस्था में थे। आतंकवादियों ने प्राइवेट पार्ट्स देख कर यह जानने की कोशिश की कि पीड़ित हिन्दू हैं या नहीं। यह सिर्फ हत्या नहीं थी, यह एक सोची-समझी धार्मिक पहचान पर आधारित निशाना साधने की भयावह रणनीति थी।

शवों की हालत देखकर डॉक्टर तक कांप उठे। मानवता की सारी सीमाएं पार कर दी गई थीं। इस निर्मम कृत्य ने तथाकथित 'भाईचारे' की चमकदार छवि को तार-तार कर दिया। यह सवाल उठाता है — क्या यही वह भाईचारा है, जिसकी दुहाई दी जाती रही है? क्या हिन्दू समाज को अपनी धार्मिक पहचान के चलते इस तरह अपमानित और मारा जाना सहना चाहिए?

आज जो लोग 'गंगा-जमुनी तहज़ीब' का ढोंग करते हैं, वे इस नृशंसता पर मौन क्यों हैं? जब आतंक के नाम पर मजहबी घृणा का खेल खेला जाता है, तब सारे मानवाधिकार संगठन, मीडिया संस्थान और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग अचानक दृष्टिहीन क्यों हो जाता है?

इस घटना ने हिन्दू समाज को फिर से चेताया है कि उसकी धार्मिक पहचान को मिटाने की योजनाबद्ध साजिशें जारी हैं। अब समय आ गया है कि हिन्दू समाज अपनी सुरक्षा, स्वाभिमान और अस्तित्व के लिए सजग रहे।
महज भावनाओं और आदर्शों के सहारे जीने का युग बीत चुका है। अब सच्चाई को पहचानने और उसके अनुरूप संगठित होने का समय है।

पहलगाम में खुलेआम हिन्दू शवों की बेइज्जती केवल एक आतंकी हमला नहीं था — यह पूरी सभ्यता और संस्कृति पर सीधा आघात था।
हमें इस घटना को कभी भूलना नहीं चाहिए।
भविष्य में अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सजग और संगठित रहना ही हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।

लेखिका: मैतै समुदाय सनातनी विचारक अमिता सिंह बेंगलूर (असम शिलचर)

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