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पढ़ने की उम्र में बच्चे आ रहे हैं नशे की गिरफ्त में, प्रशासन मोन : रविंद्र आर्य

पंचर जोड़ने वाले सौल्यूशन का खुलेआम नशे के लिए हो रहा इस्तेमाल

Ghaziabad :एक न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार नशे की मंडी में इन दिनों एक नए नशे में नाबालिगों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। जो कि बच्चों का शुरुआती नशा है। चरस, गांजा, अफीम, भोला का मुनका (भाँग की गोली ) और स्मेक जैसे नशे के बीच नाबालिग नशेबाजों की एक ऐसी फौज पनपने लगी है। जिसमें नौनिहालों के वर्तमान और भविष्य पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। धीरे-धीरे ग्रामीण इलाका भी अब इस गोरखधंधे से जुड़े लोगों की गिरफ्त में आता जा रहा है।

*सावधान*:  उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद, मैनपुरी और कई जनपद को अब नशे की मंडी के नाम से जाना जाता है। यहां हर प्रकार के नशे का काला कारोबार धड़ल्ले से किया जाता है। यदा-कदा पुलिस द्वारा भी चरस और हेरोइन की खेप बरामद कर इस बात की पुष्टि की जा चुकी है। इन दिनों जिले की नौनिहालों की बड़ी संख्या ऐसे नशे की गिरफ्त में है जो बाजार में किराने और स्टेशनरी की दुकान से बड़ी आसानी से मिल जाता है।
 "जहाँ बच्चों के भविष्य के लिए किताब बिकनी चाहिए वहाँ अब सूखा नशा बेचा जा रहा है "
इस नए नशे की श्रेणी में आती है। यह चीजें जिनके माध्यम से साइकिल के पंचर को जोड़ा जाता है। हम बात कर रहे हैं, आसानी से दुकानों पर मिलने वाले बोनफिक्स और उसी श्रेणी के दूसरे तरल पदार्थों की जैसे ओमीनी केमिकल फ्लूड जिनका प्रयोग पंचर जोड़ने के लिए किया जाता है। आप हैरान होंगे कि पंचर जोड़ने वाले सामानों का भला नशे के रूप में क्या प्रयोग होता है? मगर यह सच है। कचरा बीनने वाले और गरीब तबके के बच्चे स्टेशनरी और किराने की दुकान से इन चीजों को खरीदने के बाद रूई या फिर सूती कपड़ों में डालकर नाक के जरिए सुघते हैं। कचरा बीनने वाले बच्चों का कहना है कि इससे उन्हें नशा का एहसास होता है। नशा करने वाले बच्चों ने बताया कि इस नशे को करने के बाद उन्हें भूख भी नहीं लगती है। यह एक ऐसा नशा जो तिल-तिल कर इंसान को मौत के दरवाजे तक ले जाएगा। शहर से लेकर ग्रामीण अंचल तक यह नशा पिछले कुछ महीनों से जोर पकड़ता जा रहा है। हैरत की बात तो यह है कि खुले आम बिक रहे इस जहरीले नशे से पुलिस प्रशासन, एनजीओ,आयुर्वेदिक, ड्रग्स और फ़ूड्स सभी विभाग अनजान बने हुए है। जानकारों के अनुसार यदि समय रहते इस नशे पर रोक नहीं लगाई गई तो नौनिहालों का भविष्य तवाह हो जाएगा।
*गंभीर बीमारियां दे सकता है यह शौक* गाजियाबाद नशा मुक्त अभियान से जुड़े रविंद्र आर्य ने आमजन जनमानस कों जागरूक करने हेतु नशे से सम्बंधित जानकारी रखने वाले अनेक डॉक्टरों के वीडियो मेकर बन नशे में बीमार बच्चों की रोकथाम वीडियो वायरल के माध्यम से सूखा नशा के बारे में प्रशासन को आगवत कराया था।
जैसे- नशे के रूप में द्रव्यों का प्रयोग करने पर दिल की धड़कनें धीरे-धीरे कम होने लगती हैं। इन सौल्यूशन को सुघने से रासायनिक पदार्थ नाक के जरिए हमारे फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं। इस नशे की लत में पड़कर लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। यह बातें मैनपुरी जिला अस्पताल में तैनात (चेस्ट रोग विशेषज्ञ) डॉ धर्मेंद्र सिंह और गाजियाबाद जिला अस्पताल में तैनात नशा कंसल्टेंसी साकेत तिवारी ने भी कही।

*शरीर की इम्यूनिटी को कम करते हैं पदार्थ* चित्रगुप्त महाविद्यालय के रसायन शास्त्र के विभागाध्यक्ष रहे डॉक्टर अवधेश जौहरी ने बताया कि पंचर ब अन्य के सामानों को जोड़ने वाले द्रव्यों में एल्कोहल पदार्थ व टाक्सिक एसिड मिले होते हैं। चूकि इन में एल्कोहल पदार्थों की मात्रा होती है। इसलिए नाक से सुनने पर नशे का होना स्वभाविक है। सुनने पर रास़ायनिक पदार्थ सांस के जरिए ऑक्सीजन में घुल जाते हैं और शरीर की इम्यूनिटी को कम कर देते हैं।

*स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है यह नशा* मैनपुरी जिला अस्पताल के (फिजीशियन) डॉ.जे जे राम ने बताया पंचर जोड़ने वाली ट्यूब या बोनफिक्स नशे की हालत में जानलेवा या विपरीत घातक हो सकते हैं। इसका विपरीत प्रभाव फेफड़े गुर्दा आदि पर सीधा पड़ता है। इंसान अपनी दिमागी संतुलन खो देता है, और पागल सा हो जाता है।उन्होंने बताया कि इन चीजों में मिथाइल, इथाइल ,अल्कोहल मिली होती है जो मानसिक रूप से इंसान को विकलांग बना देती है।

*यह सूखा नशा बॉडी में कम्पन पैदा कर देता है* गाजियाबाद (होमियोपैथीक विशेषज्ञ) डॉ सीपी कश्यप बताते है की ओमीनी फ्लूड जैसे घातक केमिकल फ्लूड सुघने से मस्तिष्क का कॉमन सेन्स ख़तम हो जाता है, यह बॉडी में कम्पन पैदा कर देता है, जिससे इस नशे में दौरों आदि आना आम बात है। नशा करने वालों को न्यूरल या एनजाइटी डिप्रेशन में अंनसेंस हो जाता है, इसको फोकस नशा भी बोलते है, जिससे भूख लगनी बंद हो जाती है, ओर धीरे-धीरे शरीर की हड्डिया गलने लग जाती है।

*यह आपको अधिक सुस्त बना रहा है* गाजियाबाद (जर्नल सर्जन) डॉ आर के पोद्दार बारे में विस्तार से बताते हुए कहते है कि एंग्जायटी डिप्रेशन अवसाद, निराशा व दुःख से जन्म लेती है। जब हम अपनी भावनाओं को अनदेखा करते हैं तो वे हमारे दुःख का कारण बनती हैं। ठीक इसी प्रकार, नजरअंदाज किए जाने पर अवसाद एंग्जायटी का रूप ले सकता है। इस स्थिति में व्यक्ति को हर वक्त इस बात का डर लगा रहता है कि कुछ गलत होने वाला है। इसी प्रकार न्यूरल डिप्रेशन जो इन पदार्थों का मनोरंजक रूप से उपयोग करते हैं। यह आपको अधिक सुस्त बना रहा है आपके मस्तिष्क की गतिविधि धीमी हो जाती है।

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