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इसलिए ही मैं औरत कहलाती हूं इसलिए ही मैं औरत कहलाती हूं : सरदार मनजीत सिंह

Ghaziabad : मेरे पैदा होने से लेकर बड़े हो जाने तक भी बंदिशों में जीती हूं

दुनिया में जो अधिकार मेरे हैं मुझे ही क्यों लड़ना पड़ता है


घर की जिम्मेदारी से लेकर ससुराल तक जिम्मेदारी निभाती हूं

बेटी बहन पत्नी मां के रूप में अपना फर्ज निभाती हैं



घर की इज्जत भी मुझसे घर की शान भी कहलाती हूं

सुख हो तो सुखी दुख में दुखी दुख में जीवन बिताती हूं


हर मौसम की तरह बदलती है मेरे जीवन की जिम्मेदारियां

भले ही मेरा कोई भी रूप बेटी बहन पत्नी मां हर ढांचे में ढल जाती हूं


इसलिए ही मैं औरत कहलाती हूं इसलिए ही मैं औरत कहलाती हूं


सरदार मनजीत सिंह

आध्यात्मिक एवं सामाजिक विचारक

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