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ईद –उल –अजहा त्याग, बलिदान, कुर्बानी की याद दिलाने तथा समाज में सद्भाव, सहियोग, भाईचारा कायम करने का त्यौहार है : रामदुलार यादव

 

ईद –उल –अजहा पर 21 जुलाई 2021 पर विशेष :-

भारत विभिन्न विचारधाराओं, भाषाओं बोलियों संस्कृतियों धर्मों का देश है| सभी धर्मों में त्यौहार मनाने की परंपरा है, इसके माध्यम से लोग एक दुसरे से मिलकर खुशियाँ बाँटते है| इसी क्रम में इस्लाम धर्म में ईदुल अजहा, बकरीद का त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण, समाज को सन्देश देने वाला है| यह त्याग और कुर्बानी का त्यौहार है, अल्लाह के प्रति सम्पूर्ण समर्पण का भाव सबसे प्रिय से प्रिय की कुर्बानी, अजहा का अर्थ ही होता है बलिदान, कुर्बानी, त्याग की भावना, हजरत इब्राहिम एक पैग़म्बर थे| पैगम्बर का अर्थ सर्वशक्तिमान अल्लाह के पैगाम को जन–जन में पहुंचना तथा समाज में प्रेम, सहयोग, सद्भाव और भाईचारा बढ़ाना, नैतिक, आचरण करना, दुसरे के धन का अपहरण न करना नेक कमाई कर जीविका चलाना किसी को मन, वचन, कर्म से चोट न पहुंचना|


अल्लाह ने आपने प्रिय पैगम्बर हजरत इब्राहिम का इम्तिहान इसलिए लेना चाहा कि क्या वह दूसरों से त्याग, बलिदान और कुर्बानी करने का सन्देश व पैगाम देते है, यह उसका अनुसरण भी करते है | सबसे प्रिय चीज कुर्बानी स्वप्न मांगी, साधारण जनता की तरह हजरत इब्राहीम को पुत्र इस्माइल से अपार मुहब्बत थी क्योंकि वह उनकी इकलौती संतान थे, बेहद मुहब्बत के बाद भी हजरत इब्राहिम ने अपने प्रिय पुत्र की कुर्बानी करने का निर्णय किया| रास्ते में उन्हें उनके निर्णय को गलत ठहराने वाले शैतान मिले तथा कहा कि दुनिया में क्या कोई अपने पुत्र की कुर्बानी करता है जो तुम बेटे को ही शहीद करने जा रहे हो, यह तुम्हारा इकलौता पुत्र है इसकी क़ुर्बानी कर दोगे तुम्हारे सामने भविष्य में जीवन जीने का संकट पैदा हो जायेगा| एक बार हजरत इब्राहिम विचलित हुए कि क्यों न किसी और की कुर्बानी कर दी जाय, लेकिन उन्होंने निर्णय करने में जरा सी देर न कर अपने प्रिय पुत्र की कुर्बानी करने का निर्णय कर आँख पर पट्टी बाँध ली वह समझ गये थे कि अल्लाह की नजरों में मुझे जो स्वप्न देखा है वही कार्य करना चाहिए| बेटे का मोह त्याग दिया तथा बेटे की कुर्बानी दे दी लेकिन जब हजरत इब्राहिम ने पट्टी खोली तो देखकर आश्चर्य चकित रह गये बेटे के स्थान पर एक बकरा कुर्बान हुआ बेटा इस्माइल सही था इस त्यौहार को बकरीद इसलिए कहते है बकरा, ऊंट, भेड़ जिसकी भी कुर्बानी होती है उसे लोग बहुत ही प्यार से लोग पालते है जिस जानवर की कुर्बानी होती है उसके मांस का एक तिहाई हिस्सा समाज के कमजोर वर्गों में तथा एक तिहाई हिस्सा अपने मित्र, पडोसी, रिशतेदारों में बांटा जाता है शेष भाग अपने घर के लिए रखते है इसलिए यह त्याग बलिदान, क़ुर्बानी का त्यौहार है जरुरत मंद की सेवा करना जिन पर अन्न, वस्त्र नहीं है उनकी मदद करना, मिल बाँट कर खाना इस त्यौहार की विशेषता है दूसरों की भलाई के लिए अपनी प्रिय से प्रिय वस्तुओं का उपयोग करना इस त्यौहार से प्रेरणा मिलती है|


हम इस अवसर पर सभी भाई–बहनों महानुभाओं और बच्चों को ईद–उल–अजहा की बधाई देते हुए कहना चाहते है कि हजरत इब्राहिम ने जो त्याग, तपस्या, बलिदान और कुर्बानी का संदेश दिया है दूसरों के हित में त्याग करने से हम पीछे नहीं हटेंगे, समाज में सद्भाव भाई–चारा सहयोग की भावना पैदा कर सामाजिक बुराइयां तथा धार्मिक पाखण्ड का त्याग करेंगे शैतान के बहकावे में कभी नहीं आयेंगे, जो नफरत का वातावरण समाज में पैदा करते है उन्हें हतोत्साहित करेंगे, यह पर्व सरकार के दिशा निर्देश का पालन करते हुए मनाये| पुन: हार्दिक मुबारकबाद |

                                                            

                                                                   लेखक:

                                                        

                                                                          रामदुलार यादव

                                                                          संस्थापक/अध्यक्ष 

                                                                       लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट

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