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“8 मार्च 2021 अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष”

 नारी विश्व मानव सृष्टि की महत्वपूर्ण आधारशिला है| समाज को समरस बनाने में भी उसका विशेष योगदान माँ, बहन, बेटी, जीवन संगनी विविध रूपों में रह अपने कर्तव्य का निर्वहन प्रेम, शालीनता और सहयोग से करती हैं| कठिन परिस्थितियों में भी वह अपने कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होती, निर्भीकता पूर्वक परिवार, समाज का दायित्व निभाते हुए सुबह से देर रात तक काम में लगी रहती है, उसके बाद भी उसके काम को कोई सामाजिक मान्यता नहीं मिलती, न उसका आर्थिक मूल्यांकन ही होता है, 8 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उसके कामों का वर्णन कर तथा उसके सम्मान में हम कुछ शब्द बोलकर उसके महत्व को बताकर अगले वर्ष महिला दिवस के लिए क्या करना है सोचने लगते हैं लेकिन यहाँ यह कहना चाहते है कि महिला की प्रतिष्ठा और गरिमामय जीवन, समानता और स्वतंत्रता के लिए हमें प्रतिदिन कार्य करने की आवश्यकता है| 


जन-जागरण कर समाज में प्रचारित करने पर बल देना है कि हर क्षेत्र में नर-नारी समानता का भाव विश्व स्तर पर होना चाहिए| अशिक्षा, विषमता, गरीबी ही उनके सम्मान में बाधा है| राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय जगत में महिलाओं को अधिकार और समानता, स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और गरिमामय जीवन जीने का अधिकार मिले| देश और समाज हित में अनेंकों बहादुर महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के योगदान दिये है| उनसे हमें प्रेरणा लेकर समाज, देश में महिला जो जागरुक हैं कार्य करेंगी तो जो महिलाएँ अशिक्षा, गरीबी, असमानता झेलती हुई अन्तिम पायदान पर है, उन्हें ऊपर उठाने में मदद मिलेगी, और वह मुख्यधारा में आ सकेंगी| अन्याय, अत्यचार, शोषण का प्रतिकार कर सकती है| विश्व की आधी आबादी पुरुष प्रधान समाज में 21वीं शदी में उपेक्षित और हर तरह के शोषण की शिकार हैं| इसे बदलने में महिला ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है| कभी उसे दुर्गा, काली के रूप में, कभी राधा, मीरा, सन्त मदर टेरेसा बनकर समाज में अन्याय, अत्याचार, शोषण से लड़ते हुए प्रेम, सहयोग, करुणा और दया से सेवाभाव पैदाकर कार्य करना होगा|

  आज विश्व इतिहास में अनेकों महिलाओं ने देश, समाज सुदृढ़ और स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया है, सेवाभाव पैदा किया उनका उल्लेख कर उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी दें, उनके सम्मान में समाज को अवगत कराते हुए उन्हें स्मरण करना, उनके प्रति श्रद्धारत नमन कराना, जिससे उनके बताये हुए मार्ग पर हम कुछ कदम चल सकें, अनिवार्य समझ कर कहना चाहते है कि प्राचीनकाल में डा0 राम मनोहर लोहिया ने अन्याय से लड़ने वाली प्रथम महिला द्रौपती को माना, और कहा कि अनाचार का प्रतिकार महिलाओं को करने के लिए महाभारत की द्रौपती प्रेरणा देती है|

  मनुस्मृति काल तक आते-आते महिलाओं को असमानता और हर तरह के शोषण का शिकार होना पड़ा, कहने को तो “यत्र नार्यस्तु, पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” जहाँ नारी का सम्मान होता, वहां देवता निवास करते है, लेकिन प्रचलन में नारी को न शिक्षा, न संपत्ति का अधिकार था, न समानता का, हर वर्ग की नारी शोषण का शिकार, शिक्षा से वंचित थी| शुद्र तथा नारी चाहे वह किसी भी वर्णाश्रम की हो सेवा करने के अलावा वह मूक दर्शक बनी हुई परतंत्रता का जीवन जीने को अभिसप्त थी| विधवा, बाल विबाह, सती प्रथा की कुरीतियों को सहन करती हुई देवदासी बन पण्डे, पुजारियों की हबस का शिकार हो नारकीय जीवन जी रही थी| 


जिस व्यवस्था का महिमा मंडन करते हुए आज भी वे लोग न उपरोक्त बुराइयों पर खेद व्यक्त करते है, न खण्डन करते हैं| नारी को वस्तु समझा जाना कितना शर्मनाक था, रीतिकाल में तो नारी का शोषण चरम पर उसके शरीर का खुला चित्रण, अश्लील मुहावरों से तथा नख-शिख वर्णन अनादर की पराकाष्ठ थी, सामन्त और राजा अपने यहाँ जिन कवियों को संरक्षण देते थे उनसे यही अपेक्षा करते थे कि वह महिलाओं के सौन्दर्य का वर्णन अतिशयोक्ति अलंकार में करें, जिससे उनकी सामन्ती सोच और अहम संतुष्ट हो|

    19वीं शदी में सावित्री बाई फूले ने महिलाओं के लिए विद्यालय खोलकर तथा प्रसूति गृह का निर्माण कर शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं को जागरूक किया, विधवा तथा बाल संरक्षण के लिए काम किया, शेख फातिमा ने उनका बहुत ही सहयोग किया, उन्होंने परिवार से लेकर समाज तक से कष्ट पाया और सहर्ष झेला, लेकिन उनका महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य कैसे अच्छा हो संघर्ष जारी रहा|

   आधुनिक काल आते-आते नारी में सशक्तिकरण की ज्वाला धधकने लगी तथा वह समता, स्वतंत्रता, न्याय पाने के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार हो गयी, हर तरह के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने लगी| झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध मादम भीका जी कामा, दुर्गा भाभी, उषा मेहता, अरुणा आसिफ अली, सरोजनी नायडू ने साम्राज्यवाद के समूल नाश के लिए देश, विदेश में जन-जन को आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए तैयार किया| नागालैंड की रानी गिडालू ने जल, जंगल, जमीन आदिवासियों की बचाने के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, भयंकर यातना और जेल में कष्ट झेलने के बाद भी उनका संघर्ष कम नहीं हुआ| अंग्रेज उन्हें भयंकर विद्रोही समझता था, वह आजादी के बाद भी नागा समुदाय की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक स्थिति को मजबूत बनाने में लगी रही| सन्त मदर टेरेसा सेवा, करुणा और त्याग द्वारा सन्त की उपाधि से अलंकृत हुई| अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस न्यूयार्क में नौकरी में कम घन्टे की मांग तथा पुरुषों के बराबर वेतन दिया जाय, संघर्ष करने वाली महिलाओं की याद में मनाया जाता है| 1917 में महिलाओं को रूस में मतदान का अधिकार मिला| अब 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं को समता, सम्मान तथा गरिमामय जीवन जीने तथा उनकी स्वतंत्रता में कोई बाधा न पहुंचाए देश की महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए मनाया जाता है, आज भी पुरुषों के बराबर अधिकार के लिए महिलाऐं संघर्ष कर रही हैं तथा लोक सभा, विधान सभा में 33% आरक्षण के लिए लगातार मांग कर रही हैं| हम उन महिलाओं को नमन करते हुए स्मरण कर गौरव का अनुभव कर रहे हैं, जिन्होंने नारी जाति के सर्वांगीण विकास तथा न्याय और स्वतंत्रता के लिए पूरा जीवन लगा दिया|


                                                                         लेखक:


                                                                    राम दुलार यादव 

                                                                    संस्थापक/अध्यक्ष 

                                                               लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट

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