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भारत ने विश्व को सबसे कह देती है वैज्ञानिक मिलने की उत्कृष्ट खोजें इन महान वैज्ञानिकों का प्रयास है जो आज विदेशी वैज्ञानिक खोज कर रहा है

दिल्ली : 1000 वर्ष पूर्व और 1000 वर्ष बाद कौन सी तारीख को , कितने बज कर कितने बजे तक ( घड़ी , पल , विपल ) कैसा सूर्यग्रहण या चन्द्र ग्रहण लगेगा या होगा , यह हमारा ज्योतिष विज्ञान बिना किसी अरबों खरबों का संयत्र उपयोग में लाये हुए बता देता है ! 


क्या कभी नोटिस किया है आपने ?


इसका अर्थ क्या है ?


इसका अर्थ यह है कि हमारे ऋषि मुनियों , वेदज्ञ , सनातन धर्म में पहले से यह पता था कि चन्द्रमा , पृथ्वी , सूर्य इत्यादि का व्यास ( Diameter ) क्या है ? उनकी घूर्णन गति क्या है ?? ( Velocity ऑफ़ Rotation ) क्या है ?


उनकी revolution velocity और time क्या है ?


पृथ्वी से सूर्य की दूरी , सूर्य से चन्द्र की दूरी , चन्द्र की पृथ्वी से दूरी कितनी है ?? 


इन सबका specific gravity , velocity , magnitude , circumference , diameter , radius , specific velocity , gravitational energy , pull कितना है ??


इतनी सटीक गणना होती है कि एक बार NASA के scientist ग़लती कर सकते हैं seconds की लेकिन ज्योतिष विज्ञान नहीं ! 


वो तो बस हम लोगों को हमारे ऋषि मुनियों ने juice निकाल कर दे दिया है कि पियो , छिलके से मतलब मत रखो ! 


बस एक formula तैयार करके दे दिया है जिसमें ज्योतिषी बस values डालते हैं और उत्तर सामने होता है ! 


अब स्वयं सोचिये , science के विद्यार्थी भी सोचें कि दो planets के बीच कि दूरी नापने के लिए जो parallax या pythagorus theorem का use होता है , इसका मतलब वह पहले से ही ज्ञात था ! 


और हम लोग KEPLERS ( A western scientist ) को इन सबका दाता मानते हैं ! 


तो ऐसे ही गुरुत्वाकर्षण के सारे नियम भी हमें पहले से ही पता होंगे तभी तो , हम पृथ्वी , सूर्य , चन्द्रमा इत्यादि के अवयवों को जान पाए ! 


अरे चन्द्रमा ही क्या कोई भी ग्रह नक्षत्र ले लीजिये , सबमें आपको proved science मिलेगी ! 


शनि ग्रह के बारे में बात करते हैं ! शनि की साढ़े साती सबको पता होगी और अढैय्या भी !


यह क्या है ??? कभी अन्दर तक खोज करने की कोशिश की ??? 


नहीं ! क्योंकि हम इन सबको बकवास मानते हैं ! 


चलिए मैं ले चलता हूँ अन्दर तक ! 


According to NASA , Modern science , शनि ग्रह ( Saturn ) सूर्य का चक्कर लगाने में लगभग १०,७५९ दिन, ५ घंटे, १६ मिनट, ३२.२ सैकिण्ड लगाता है ! 


यही हमारे शास्त्रों में ( सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमणि ) में यह है १०,७६५ दिन, १८ घंटे, ३३ मिनट, १३.६ सैकिण्ड और १०,७६५ दिन, १९ घंटे, ३३ मिनट, ५६.५ सैकिण्ड ! 


मतलब 29.5 Years का समय लेता है यह सूर्य के चक्कर लगाने में ! अगर पृथ्वी के अपेक्षाकृत देखा जाय तो यह साढ़े सात वर्ष लेता है पृथ्वी के पास से गुजरने में ! और ऐसे कई बार होता है जब पृथ्वी के revolution orbit से शनि ग्रह का orbit आसपास होता है ! क्योंकि यह ग्रह बहुत धीरे अपना revolution पूरा करता है और वहीँ पृथ्वी उसकी अपेक्षाकृत बहुत तेजी से सूर्य का चक्कर काटती है ! 


शनि के सात वलय ( Rings ) होते हैं जो एक एक कर अपना प्रभाव दिखाते हैं ! 15 चन्द्रमा हैं इस ग्रह के , जिसका प्रभाव 2.5 + 2.5 + 2.5 = 7.5 के अन्तराल पर अपना प्रभाव पृथ्वी के रहने वाले जीवों पर दिखाते हैं ! 


अब दिमाग लगाईये कि बिना किसी astronomical apparatus या संयंत्र के उन्होंने यह सब कैसे खोजा होगा ???


हम नहीं जानते तो इसीलिए इस प्राचीन विद्या को बेकार , फ़ालतू बकवास बता देते हैं और कहते हैं कि वेद इत्यादि सब जंगली लोगों के ग्रन्थ हैं ! 


मेहरावली स्थान का नाम सबने सुना होगा ! गुडगाँव के पास ही है जिसको आप लोग क़ुतुब मीनार के नाम से जानते हैं ! 


यह वाराहमिहिर की Observatory थी ! जिसे हम जानते हैं कि यह क़ुतुब मीनार है , वह वाराहमिहिर की Observatory थी जिस पर चढ़कर ग्रह नक्षत्रों इत्यादि का अध्ययन किया जाता था ! लेकिन हमारी गुलामी मानसिकता ने उसे क़ुतुब मीनार बना दिया ! इतना भी दिमाग में नहीं आया कि उस जगह लौह स्तम्भ क्या कर रहा है ? देवी देवताओं कि मूर्तियाँ क्या कर रही हैं ? जंतर मंतर जैसा structure वहाँ क्या कर रहा है ?? 


बस जिसने जो बता दिया उसी में हम खुश हैं ! 


पता नहीं हम लोगों को अपने ऊपर गर्व , या अपनी सांस्कृतिक विरासत कब गर्व आएगा ?? 


खैर मुद्दे पर आते हैं ! 


तो जितने भी ग्रह नक्षत्र हमारे वेदों शास्त्रों में वर्णित हैं , पंचांग में वर्णित हैं , हमें सबके सटीक सटीक उनके विषय में अब पता था ! 


बस हमें नष्ट भ्रष्ट करने के लिए हमारी अरबों खरबों की पुस्तकें जला दी गयी , मंदिर नष्ट कर दिए गये , इतिहास कि ऐसी तैसी कर दी गयी और बचा खुचा कसर सेक्युलर वाद ने पूरी कर दी ! 


इसीलिए अब भी समय है अपने शास्त्रों पर गर्व करना सीखिए , उन पर विश्वास करन सीखिए ! 


✍🏻श्वेताभ पाठक 


 


हम न्यूटन को जानते हैं, स्वामी ज्येष्ठदेव को नहीं..


 


Written by सुरेश चिपलूनकर


 


क्या आप न्यूटन को जानते हैं?? जरूर जानते होंगे, बचपन से पढ़ते आ रहे हैं... लेकिन क्या आप स्वामी माधवन या ज्येष्ठदेव को जानते हैं?? नहीं जानते होंगे... तो अब जान लीजिए.


 


अभी तक आपको यही पढ़ाया गया है कि न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिक ही कैलकुलस, खगोल विज्ञान अथवा गुरुत्वाकर्षण के नियमों के जनक हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सभी वैज्ञानिकों से कई वर्षों पूर्व पंद्रहवीं सदी में दक्षिण भारत के स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर गणित के ये तमाम सूत्र लिख रखे हैं. इनमें से कुछ सूत्र ऐसे भी हैं, जो उन्होंने अपने गुरुओं से सीखे थे, यानी गणित का यह ज्ञान उनसे भी पहले का है, परन्तु लिखित स्वरूप में नहीं था.


“मैथेमेटिक्स इन इण्डिया” पुस्तक के लेखक किम प्लोफ्कर लिखते हैं कि, “तथ्य यही हैं सन 1660 तक यूरोप में गणित या कैलकुलस कोई नहीं जानता था, जेम्स ग्रेगरी सबसे पहले गणितीय सूत्र लेकर आए थे. जबकि सुदूर दक्षिण भारत के छोटे से गाँव में स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर कैलकुलस, त्रिकोणमिति के ऐसे-ऐसे सूत्र और कठिनतम गणितीय व्याख्याएँ तथा संभावित हल लिखकर रखे थे, कि पढ़कर हैरानी होती है. इसी प्रकार चार्ल्स व्हिश नामक गणितज्ञ लिखते हैं कि “मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि शून्य और अनंत की गणितीय श्रृंखला का उदगम स्थल केरल का मालाबार क्षेत्र है”.


 


स्वामी ज्येष्ठदेव द्वारा लिखे गए इस ग्रन्थ का नाम है “युक्तिभाष्य”, जो जिसके पंद्रह अध्याय और सैकड़ों पृष्ठ हैं. यह पूरा ग्रन्थ वास्तव में चौदहवीं शताब्दी में भारत के गणितीय ज्ञान का एक संकलन है, जिसे संगमग्राम के तत्कालीन प्रसिद्ध गणितज्ञ स्वामी माधवन की टीम ने तैयार किया है. स्वामी माधवन का यह कार्य समय की धूल में दब ही जाता, यदि स्वामी ज्येष्ठदेव जैसे शिष्यों ने उसे ताड़पत्रों पर उस समय की द्रविड़ भाषा (जो अब मलयालम है) में न लिख लिया होता. इसके बाद लगभग 200 वर्षों तक गणित के ये सूत्र “श्रुति-स्मृति” के आधार पर शिष्यों की पीढी से एक-दुसरे को हस्तांतरित होते चले गए. भारत में श्रुति-स्मृति (गुरु के मुंह से सुनकर उसे स्मरण रखना) परंपरा बहुत प्राचीन है, इसलिए सम्पूर्ण लेखन करने (रिकॉर्ड रखने अथवा दस्तावेजीकरण) में प्राचीन लोग विश्वास नहीं रखते थे, जिसका नतीजा हमें आज भुगतना पड़ रहा है, कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में संस्कृत भाषा के छिपे हुए कई रहस्य आज हमें पश्चिम का आविष्कार कह कर परोसे जा रहे हैं.


जॉर्जटाउन विवि के प्रोफ़ेसर होमर व्हाईट लिखते हैं कि संभवतः पंद्रहवीं सदी का गणित का यह ज्ञान धीरे-धीरे इसलिए खो गया, क्योंकि कठिन गणितीय गणनाओं का अधिकाँश उपयोग खगोल विज्ञान एवं नक्षत्रों की गति इत्यादि के लिए होता था, सामान्य जनता के लिए यह अधिक उपयोगी नहीं था. इसके अलावा जब भारत के उन ऋषियों ने दशमलव के बाद ग्यारह अंकों तक की गणना एकदम सटीक निकाल ली थी, तो गणितज्ञों के करने के लिए कुछ बचा नहीं था. ज्येष्ठदेव लिखित इस ज्ञान के “लगभग” लुप्तप्राय होने के सौ वर्षों के बाद पश्चिमी विद्वानों ने इसका अभ्यास 1700 से 1830 के बीच किया. चार्ल्स व्हिश ने “युक्तिभाष्य” से सम्बंधित अपना एक पेपर “रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड” की पत्रिका में छपवाया. चार्ल्स व्हिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के मालाबार क्षेत्र में काम करते थे, जो आगे चलकर जज भी बने. लेकिन साथ ही समय मिलने पर चार्ल्स व्हिश ने भारतीय ग्रंथों का वाचन और मनन जारी रखा. व्हिश ने ही सबसे पहले यूरोप को सबूतों सहित “युक्तिभाष्य” के बारे में बताया था. वरना इससे पहले यूरोप के विद्वान भारत की किसी भी उपलब्धि अथवा ज्ञान को नकारते रहते थे और भारत को साँपों, उल्लुओं और घने जंगलों वाला खतरनाक देश मानते थे. ईस्ट इण्डिया कंपनी के एक और वरिष्ठ कर्मचारी जॉन वारेन ने एक जगह लिखा है कि “हिन्दुओं का ज्यामितीय और खगोलीय ज्ञान अदभुत था, यहाँ तक कि ठेठ ग्रामीण इलाकों के अनपढ़ व्यक्ति को मैंने कई कठिन गणनाएँ मुँहज़बानी करते देखा है”.


 


स्वाभाविक है कि यह पढ़कर आपको झटका तो लगा होगा, परन्तु आपका दिल सरलता से इस सत्य को स्वीकार करेगा नहीं, क्योंकि हमारी आदत हो गई है कि जो पुस्तकों में लिखा है, जो इतिहास में लिखा है अथवा जो पिछले सौ-दो सौ वर्ष में पढ़ाया-सुनाया गया है, केवल उसी पर विश्वास किया जाए. हमने कभी भी यह सवाल नहीं पूछा कि पिछले दो सौ या तीन सौ वर्षों में भारत पर किसका शासन था? किताबें किसने लिखीं? झूठा इतिहास किसने सुनाया? किसने हमसे हमारी संस्कृति छीन ली? किसने हमारे प्राचीन ज्ञान को हमसे छिपाकर रखा? लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि पश्चिमी देशों द्वारा अंगरेजी में लिखा हुआ भारत का इतिहास, संस्कृति हमेशा सच ही हो, यह जरूरी नहीं. आज भी ब्रिटिशों के पाले हुए पिठ्ठू, भारत के कई विश्वविद्यालयों में अपनी “गुलामी की सेवाएँ” अनवरत दे रहे हैं.


✍🏻सुरेश चिपलुनकर


 


महान् ज्योतिषाचार्य — वराहमिहिर


 


वराहमिहिर का जन्म पाँचवीं शताब्दी के अन्त में लगभग 556 विक्रमी संवत् में तदनुसार 499 ई. सन् में हुआ था। इनका स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) से 20 किलोमीटर दूर कायथा (कायित्थका) नामक स्थान पर हुआ था।


 


इनके पिता का नाम आदित्य दास और माता का नाम सत्यवती था। इनके माता-पिता सूर्योपासक थे।


 


वराहमिहिर ने कायित्थका में एक गुरुकुल की स्थापना भी की थी।


 


वराहमिहिर ने 6 ग्रन्थों की रचना की थीः—


(1.) पञ्चसिद्धान्तिका (सिद्धान्त-ग्रन्थ),


(2.) बृहज्जातक (जन्मकुण्डली विषयक),


(3.) बृहद्यात्रा,


(4.) योगयात्रा (राजाओं की यात्रा में शकुन) ,


(5.) विवाह पटल ( मुहूर्त-विषयक),


(6.) बृहत् संहिता (सिद्धान्त तथा फलित)।


 


इनमें से पञ्चसिद्धान्तिका और बृहद् संहिता सर्वाधिक प्रसिद्ध है। बृहत् संहिता में 106 अध्याय हैं। इस कारण यह विशाल ग्रन्थ है। इसमें सूर्य चन्द्र, तथा अन्य ग्रहों की गतियों एवं ग्रहण आदि का पृथिवी तथा मानव पर प्रभाव, वर्षफल (गोचर), ऋतु के लक्षण, कृषि-उत्पादन, वस्तुओं के मूल्य, वास्तुविद्या में ज्योतिष् का महत्त्व इत्यादि विविध विषय संगृहीत है। सिद्धान्त ज्योतिष् और फलित ज्योतिष् का यह संयुक्त ग्रन्थ है। इसमें भारतीय भूगोल का भी निरूपण किया गया है। इस ग्रन्थ पर भट्टोत्पल की टीका मिलती है। उसने इस पर 966 ई. में अपनी टीका लिखी थी।


 


पञ्चसिद्धान्तिका में उन्होंने पाँच सिद्धान्तकों का वर्णन किया हैः—-


(1.) पौलिश,


(2.) रोमक,


(3.) वशिष्ठ,


(4.) सौर,


(5.) पितामह।


 


वराहमिहिर एक महान् ज्योतिषाचार्य थे। वे एक खगोल विज्ञानी भी थे। पञ्चसिद्धान्तिका के प्रथम खण्ड में उन्होंने खगोल विज्ञान पर विस्तार से चर्चा की है। चतुर्थ अध्याय में उन्हों त्रिकोणमिति से सम्बन्धित विषय पर विस्तृत चर्चा की है।


 


वराहमिहिर ने 24 ज्या मान (R sin A value) वाली ज्या सारणी (sine Table) दी है।


 


अपने बृहत् संहिता ग्रन्थ में संचय ज्ञात करने के लिए उन्होंने एक पद्धति विकसित की है, जिसे “लोष्ठ-प्रस्तार” कहा जाता है। यह सारणी पास्कल त्रिकोण से मिलती जुलती है।


 


सुगन्धित द्रव्य तैयार करने के लिए वराहमिहिर ने 4 गुणा 4 पेंडियागोनल जादुई वर्ग ( Pandiagonal Magic Square) का उपयोग किया है।


 


वराहमिहिर ने इसके अतिरिक्त नक्षत्र विद्या, वनस्पति विज्ञान, भूगोल शास्त्र, प्राणीशास्त्र और कृषि विज्ञान पर भी चर्चा की है।


 


इन ग्रन्थों में हमें प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं अनुसन्धान वृत्ति का ज्ञान प्राप्त होता है।


 


वराहमिहिर की बहुमुखी प्रतिभा के कारण उनका स्थान विशिष्ट है।


 


उनका निधन लगभग 644 विक्रमी संवत् अर्थात् 587 ई. सन् में हुआ था।


 


-- कोन है पुराना --


न्यूटन (1642-1726)


या 


वराहमिहिर ( 57 BC ) रचित "पञ्चसिद्धान्तिका"


 


* वराहमिहिर के वैज्ञानिक विचार तथा योगदान -


बराहमिहिर वेदों के ज्ञाता थे मगर वह अलौकिक में आंखे बंद करके विश्वास नहीं करते थे। उनकी भावना और मनोवृत्ति एक वैज्ञानिक की थी। अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिक आर्यभट्ट की तरह उन्होंने भी कहा कि पृथ्वी गोल है। विज्ञान के इतिहास में वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि कोई शक्ति ऐसी है जो चीजों को जमीन के साथ चिपकाये रखती है। आज इसी शक्ति को गुरुत्वाकर्षण कहते है। 


वराहमिहिर ने पर्यावरण विज्ञान (इकालोजी), जल विज्ञान (हाइड्रोलोजी), भूविज्ञान (जिआलोजी) के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। उनका कहना था कि पौधे और दीमक जमीन के नीचे के पानी को इंगित करते हैं। आज वैज्ञानिक जगत द्वारा उस पर ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने लिखा भी बहुत था। अपने विशद ज्ञान और सरस प्रस्तुति के कारण उन्होंने खगोल जैसे शुष्क विषयों को भी रोचक बना दिया है जिससे उन्हें बहुत ख्याति मिली। उनकी पुस्तक पंचसिद्धान्तिका (पांच सिद्धांत), बृहत्संहिता, बृहज्जात्क (ज्योतिष) ने उन्हें फलित ज्योतिष में वही स्थान दिलाया है जो राजनीति दर्शन में कौटिल्य का, व्याकरण में पाणिनि का और विधान में मनु का है।


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