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कलम मेरी टूट जाती हैं

इस कदर वाकिफ है कलम,
मेरे जज्बातों से,
नफरत लिखना भी चाहूँ उसे,
प्यार लिखा जाता है।
मैं चाहूँ दुरिया लिखना उसे,
आगोश का इजहार लिखा जाता है,
वो घमंड करे अपने हुस्न पर,
उसका भी टूटेगा गुरुर,
सब्र करूं कितना मैं,
बांध एक दिन टूटेगा जरूर,
नाराज भी होना चाहूँ,
तो प्यार छलकता है,
दूर होना लिखना चाहूँ, 
कलम से इंकार निकलता है।
बद्दुआ कैसे दे दूं उसको मैं,
दिल से दुआ ही निकलती है,
जितना भी पानी डालूं मैं,
आग इश्क की ओर धधकती है,
होता लिखने को बुरा उसको,
कलम मेरी रूठ जाती है,
सोचा लिखूँ छोड़ दूँ उसको,
तो कलम मेरी टूट जाती है।।।
लेखक
नरेंद्र राठी
सदस्य
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी।

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