गाजियाबाद : 'गुरु की ऊर्जा सूर्य सी, अंबर सा विस्तार/गुरु की महिमा से बड़ा नहीं कोई आकार'।। 'गुरु का सदसानिध्य ही जग में है उपहार/प्रस्तर को क्षण -क्षण गढ़े, मूरत हो तैयार'।। पाषाण में भी प्राण फूंक कर उसे जीवंत बनाने की शक्ति व सामर्थ्य केवल गुरु के भीतर ही संभव हो सकती है। अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करके जीवन को ज्ञानरुपी प्रकाश से जो प्रशस्त करे, भटक जाने पर जो उचित मार्ग दिखाए, असफलताओं से निराश हो जाने पर उत्साहवर्धन करके पुनः संघर्ष करने के लिए जो प्रेरित करे , वही गुरु है। अनंत काल से गुरु की महिमा का बखान अनेक संतों, ऋषि- मुनियों, कवियों व गीतकारों के द्वारा किया जाता रहा है और आगे भी होता रहेगा।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरित मानस के आरंभ में ही गुरु की प्रशंसा करते हुए लिखा है -'गुरु बिन भवनिधि तरहि न कोई।
जो बिरंचि संकर सम होई'।।अर्थात साक्षात् ब्रह्मा विष्णु और शंकर भगवान को भी भव सागर से पार होने हेतु गुरु का आश्रय चाहिए।
गुरु वशिष्ठ ने दशरथ पुत्र राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान बनाया। संदीपन गुरु ने देवकी और वसुदेव के पुत्र को योगेश्वर कृष्ण बनाया। रामकृष्ण परमहंस ने बालक नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बना दिया। गुरु रामानंद जी ने संसार को कबीरदास जैसा संत प्रदान किया।
ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जो गुरु की महिमा को दर्शाते हैं। गुरु ईश्वर का दिया वह अमूल्य उपहार है जो निस्वार्थ भाव से बच्चों को सही गलत और अच्छे बुरे का ज्ञान करवाता है। उन्हें एक अच्छा इंसान बनाने की जिम्मेदारी लेकर उत्कृष्ट समाज का निर्माण करता है।एक आदर्श गुरु बड़े सौभाग्य से मिलता है। इसीलिए कहा गया है -
'यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान।
सीस दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान'।।
आज के इस भौतिकवादी युग में जहां माता -पिता अपने सगे -संबंधियों के साथ भी बच्चों को छोड़ने से कई बार विचार करते हैं, वहीं वे स्कूल- कॉलेजों में अनजान शिक्षकों के साथ बच्चों को इसी विश्वास के साथ छोड़ देते हैं, कि अब उनके बच्चों का भविष्य एक सुरक्षित हाथ में है। इसीलिए गुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना गया है।
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा आदि नामों से जाना जाता है। यह गुरुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का विशेष दिवस है। प्राचीन काल में जब छात्र गुरुकुलों में रहकर शिक्षा पाते थे, तब इसी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर अपने गुरु को दक्षिणा देकर उनका आभार व्यक्त किया जाता था। आज इस पावन अवसर पर मैं अपने सभी आदरणीय गुरुजनों को कोटि -कोटि प्रणाम करते हुए हृदयतल से उनका आभार व्यक्त करती हूं-
'जन्म के दाता मात पिता हैं, आप कर्म के दाता हैं।आप मिलाते हैं ईश्वर से, आप ही भाग्य विधाता हैं '।। हे गुरु ब्रह्मा, हे गुरु विष्णु, हे शंकर भगवान आपके चरणों में प्रणाम है। हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणों में।
*-डॉ. ज्योति शर्मा* (संगीत शिक्षिका)
0 टिप्पणियाँ